गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
साज महफ़िल में मुहब्बत की , अब सजाता नहीं कोई
साँसों को महका दे वो संगीत , अब सजाता नहीं कोई
संस्कृति, संस्कारों से सुसज्जित , चलचित्र अब बनाता नहीं कोई
हर एक काम को कर लिया , लोगों ने अपना पेशा
इंसानियत की राह में , अब खुद को मिटाता नहीं कोई
भौतिकता और विलासिता से परिपूर्ण चरित्र, मानव मन को लुभाने लगे हैं
आध्यात्म की राह में ,अब अपने पाँव जमाता नहीं कोई
गीत उस खुदा की इबादत के ,अब लिखता नहीं कोई
अपनी ही मुश्किलों में उलझा, दूसरों के ग़मों से रिश्ता बनाता नहीं कोई
किसी की अँधेरी रातों में, उजाले का दीपक रोशन करता नहीं कोई
खुदा की राह को , मकसदे - जिन्दगी बनाता नहीं कोई
इंसानियत के तन पर , अब कपड़ा दिखता नहीं कोई
बीच मझधार डूबते को , अब बचाने आता नहीं कोई
तन पर कपड़े नहीं , हाथों में कटोरा लिए , नज़र आ जाते हैं चरित्र
एक रुपये की मदद को , अपने पर्स तक हाथ बढ़ाता नहीं कोई
दुःख के पहाड़ हर एक की , जिन्दगी का हो गए हिस्सा
वरना खुदा के दर पर , सजदा करने आता नहीं कोई
किसी को क्या सिला दें , किसी को क्या दें नसीहत
इन बेमानी रिश्तों में , अपना भी काम आता नहीं कोई
गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
साज महफ़िल में मुहब्बत की , अब सजाता नहीं कोई
द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
No comments:
Post a Comment