ज़रा संभलकर

 

ज़रा संभलकर

 

मैं अपने जीवन का एक संस्मरण आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ हुआ यूं कि मेरे एक मित्र को खुद पर शायद ज्यादा ही विश्वास था यानी अतिआत्मविश्वास | दीपावली  का त्यौहार आया | गली – मोहल्ले में सभी अपने  - अपने घर की छत पर बिजली वाला रंगीन तारा लगाने की तैयारी कर रहे थे | मेरे मित्र को भी अपने घर पर तारा लगाने की सूझी और शुरू हो गया तारा बनाने की तैयारी | तारा बनकर तैयार हो गया | अब बिजली की तार  ढूँढने का काम शुरू हुआ | घर में एक कबाड़ के नाम से एक पुराना लोहे का डिब्बा था बस उसी में से तारों के छोटे  - छोटे टुकड़ों को इकठ्ठा किया गया और उन्हें जोड़  - तोड़कर उसमे प्लग लगाकर छत पर तारा लटका दिया गया |

         अब शुरू होता है मेरे दोस्त के अतिआत्मविश्वास का खेल |  तारा लग गया | दोस्त का दूसरा भाई तारे के जलने यानी चमकने को लेकर अतिउत्साहित था | किन्तु ये क्या हुआ  बिजली का बटन चालू करते ही पूरे घर की बिजली गुम  और जोर की आवाज “भूम – भड़ाम “ | सारे घबरा गए कि आखिर क्या हुआ | पता चला कि तारे का प्लग बोर्ड के पॉइंट से चिपक गया | घर के सारे फ्यूज उड़ गए |

              सभी सोच रहे थे कि  आखिर ऐसा क्यों हुआ ?  साड़ी खोजबीन करने पर पता चला कि बिजली के तारों को एक दूसरे के साथ जैसे रस्सी के सिरों को बांधकर गाँठ लगाईं जाती है उसी तरह से जोड़ा गया था | अब हमारे मित्र जनाब को समझ आ गयी कि किसी भी काम को करने से पहले किसी समझदार व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए ताकि .......... भविष्य में भी ऐसी कोई घटना न हो |

              तो आप भी समझ गए होंगे कि .........अतिआत्मविश्वास कभी - कभी ..........!!!!!!!

ज़रा संभलकर ज़रा संभलकर Reviewed by anil kumar gupta on June 09, 2021 Rating: 5

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