अभिव्यक्ति की चौपड़ पर (व्यंग्य)
अभिव्यक्ति की चौपड़ पर
आज हम खड़े कहाँ हैं ?
अभिव्यक्ति विचारों की
क्या आज स्वतंत्र है ?
या फिर एक अजीब सा डर
हावी हो रहा है
विवश कर रहा है
कि चुप रहो !
गर चुप न रहे तो
चुप करा दिए जाओगे
हमेशा के लिए
न रहोगे तुम
न रहेगी तुम्हारी अभिव्यक्ति
इसलिए मूक बने रहो
देखते रहो
जो हो रहा है
दर्शक बन
साँसें रोक
यूं ही मूकदर्शक की तरह
और यदि
अभिव्यक्ति का
आनंद उठाना चाहते हो
तो
चले जाओ उस पाले में
अपनी मृत अंतरआत्मा के साथ
जहां
पापी भी साधू घोषित कर दिया
जाता है
जहां
आपको पावन गंगा की तरह
निर्मल चरित्र बनाकर
पेश किया जाता है
जहां
केवल राजा के दरबार में
राजा को खुश करने वाले
लतीफे सुनाये जाते हैं
जहां
राजा की बुराई
एक निंदनीय अपराध है
जहां एक भी अपशब्द
आपको
सागर की असीम गहराइयों में
कहीं गम कर देगा
अतः
चुप रहो
शांत रहो
क्यूं कर ? ............................
अभिव्यक्ति की चौपड़ पर (व्यंग्य)
Reviewed by anil kumar gupta
on
January 29, 2020
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