Wednesday, October 31, 2018

नदी की धार में - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता - पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू


नदी की धार में

नदी की धार में मछली भी , तिनका बन बह जाती है
जीवन के झंझावातों में, जिन्दगी तड़प कर रह जाती है

सागर के तट पर बैठ, लहरों का नज़ारा ले क्यों
लहरों से जो टकरायें , वो जिन्दगी नासूर बन रह जाती है

बगैर पंखों के कोई आसमां में , उड़े तो उड़े कैसे
बगैर हौसलों के जिन्दगी , अधूरे प्रयासों का समंदर हो जाती है

किसी के प्रयास उसकी मंजिल का , पता हुए तो हुए क्यों नहीं
खुद पर एतबार हो तो , कोशिशें बेकार हो रह जाती हैं

उत्कर्ष की राह पर, प्रयासों को जो , अपना हमसफ़र करो
असफलताओं के दौर में , जिन्दगी फंसकर रह जाती है

अपने हौसलों , अपने प्रयासों पर जो किया एतबार
जिन्दगी असफल प्रयासों की राह में , उलझकर रह जाती है

जिनके प्रयासों में होती है जान, और होता है खुद पर एतबार
उनकी जिन्दगी सफलताओं के दौर से,  गुजर रोशन हो जाती है

द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू 


चंद एहसास - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता - केंद्रीय विद्यालय सुबाथू


चंद एहसास

मैं कब कवि और शायर हो गया , इसका मुझे एहसास ही हुआ
मेरे दोस्तों , तुम्हारी ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया

खिदमत उस खुदा की , और उसके बन्दों की
इसी मकसद को लिए , जी रहा हूँ मैं

दामन में सबके खुशियाँ , मेरे अल्ला हज़ार देना
बेज़ार जी रहे हैं जो , उन्हें खुशियाँ हज़ार देना

मुसाफिर चला है खोज में , अपनी मंजिल
खुदा उसका रहबर हो , ये आरज़ू है मेरी

वंदनाउसकी  करता हूँ , आज भी मैं
कभी वो खुदा रहे हैं , मेरी मुहब्बत का

वंदनातुझको भूल जाऊं , यह आरज़ू नहीं है
मुहब्बत की बातों को तुम , खेल समझना

मुहब्बत की कोई सुबह , और कोई शाम नहीं होती
ये तो वफ़ा  -   - खुदाई है , कोई जाम तो नहीं

वफ़ा के बदले वफ़ा मिले , ये आरज़ू कर
ये दुनिया मौकापरस्तों से , पट चुकी है

द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू 

चंद एहसास - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता - पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू


 चंद एहसास

उनकी वफ़ा वफ़ा है , हमारी वफ़ा बेवफाई
उनके आंसू आंसू हैं , हमारे आंसू पानी

लख्ते ज़िगर समझ समझ, वो उसे पालते रहे
मालूम था वो उनकी मौत का , सामान होगा एक दिन

दिन क्या फिरे वो , खुद को समझ बैठे खुदा
एहसास तब हुआ जब , जिन्दगी बिखरबिखर गयी

किसी को अच्छा क्यों कहे कोई, किसी को बुरा क्यों कहे कोई
ये अवसरवादियों की दुनिया है, यहाँ बुरे को अच्छा कहे कोई

हम भी क्यों पालें , एक दिल अपने सीने में
आज भी खुदा के फरिश्तों की , कमी नहीं है इस दुनिया में

इंसानियत की राह को खुदा की , नेमत समझ क़ुबूल लें हम
बहकें तो संभाल ले कोई, गिरें तो उठा सके कोई

अपनी कोशिशों , अपनी इबादत को उस खुदा की अमानत कर लो
कोई तो हो इस जहां में, जिसे खुदा जन्नत नसीब करे

द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू 

चंद एहसास - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता - पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू


 चंद एहसास

क्यों कोई किसी को , कहे अपना
ये दुनिया छलावा है , “अवसरका

सफलता के अभिमान में तू , राह भटकना
संयम में खुद को रखना , खुद को बुलंद करना

अपनी मंजिल पर निगाह रखना, अपने प्रयासों पर विश्वास करना
रास्ते कितने कठिन हों, खुद पर एतबार करना

अपने उत्कर्ष को अपने जीवन की धरोहर करना
सत्य और कर्म की राह को अपनी मंजिल का हमसफ़र करना

अपने सामर्थ्य को अपने जीवन की धरोहर करना
आगे बढ़ते रहना और खुद को बुलंद करना

अपनी इच्छाओं पर लगाम कसना, स्वयं को बंधन मुक्त रखना
किनारे तुझको भी होंगे नसीब, स्वयं पर संयम रखना

स्वयं को अपने प्रयासों की , नाव का खेवट करना
तेरे प्रयासों को होगी मंजिल नसीब, खुद पर भरोसा करना

स्वयं को विकारों से परे रखना, खुद को सलिला सा पावन रखना
तुझ पर होगी उस प्रभू की कृपा, तुझको भी होगी मुक्ति नसीब

द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू