खुदा तेरे इर्द - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता , पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू


खुदा तेरे इर्द  - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता

खुदा तेरे इर्दगिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक के दिल में रहता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा गमगीनों की आह में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक की दुआओं में बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा पालने के शिशु की मुस्कान में बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक की जीत और हार में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक की ख़ुशी और ग़मों में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

तेरे बुरे दिनों में भी वो तेरे साथ होता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू 

खुदा तेरे इर्द - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता , पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू खुदा तेरे इर्द  - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता - द्वारा   -  अनिल कुमार गुप्ता  , पुस्तकालय अध्यक्ष  केंद्रीय विद्यालय सुबाथू Reviewed by anil kumar gupta on November 01, 2018 Rating: 5

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