सचमुच की अब कोई सहर दे या मेरे खुदा
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
अपने बन्दों को अपना अज़ीज़ कर ए मेरे खुदा
इनके दिलों में इबादत का जज्बा रोशन कर ए मेरे खुदा
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
इबादते - इल्म से रोशन हो
ये ज़मीं
तेरे करम का अब कोई सिला हो मेरे खुदा
मेरी इबादत गीत गीत बनकर ग़ज़ल बनकर निखरे
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
अपने बन्दों के दिलों में पैदा कर ज़ज्बा - ए -
इंसानियत
इनके दिलों में रिश्तों के लिए मुहब्बत पैदा कर ए मेरे खुदा
रोतों के ये हँसा सकें , गिरतों को संभाल सकें
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
पाकीज़गी इनके दिलों में , इबादत बन हो रोशन
हर एक शख्स तेरा नूर बन रोशन हो ए मेरे खुदा
इस ज़मीं को जन्नत के एहसास से कर रोशन
सचमुच की अब कोई सहर दे ए मेरे खुदा
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