ज़र्ज़र होती काया का क्या
anil kumar gupta
January 29, 2020
ज़र्ज़र होती काया का क्या
ज़र्ज़र होती काया का क्या , मन में
प्राण बसाकर देखो
जीवन है नाम संघर्ष का , खुद से
प्रेम जताकर देखो
उस परम तत्व से आलिंगन कर, भक्ति की
लौ जलाकर देखो
पावन हो जायेंगे तन - मन , मुक्ति
का मार्ग सजाकर देखो
सुधर जाएगा लोक - परलोक , प्रभु से मोह लगाकर देखो
अपने गीतों को करलो इबादत का जरिया,
उस खुदा से दिल लगाकर देखो
कालिंदी सा पावन हो तन – मन ,
सत्कर्म मार्ग रोशन कर देखो
मानवता हो पावन कर्म तुम्हारा,
इंसानियत की राह पर जाकर देखो
प्रेम खुदा है खुदा इबादत, उस खुदा
से इश्क जताकर देखो
हर मानव में बसता खुदा है, सबसे
प्रेम जताकर देखो
खुदा तुम्हारा तुम खुदा के, खुदा के
दर पर जाकर देखो
जीवन की खुशियों के पल , खुदा के
बन्दों पर लुटाकर देखो
जीवन क्यों हो मोह का दलदल , माया
मोह भुलाकर देखो
क्या लाये थे क्या ले जाना, अपना
धर्म निभाकर देखो
ये जीवन उस प्रभु की धरोहर , हर पल
उसका चिंतन कर देखो
तुझमे हर पल बसता है वो, उस प्रभु
की शरण में जाकर देखो
ज़र्ज़र होती काया का क्या
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January 29, 2020
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