मम्मी - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू

November 01, 2018

मम्मी

मम्मी मेरी प्यारी मम्मी
जग से  है दुलारी मम्मी
जब भी मैं रूठ जाऊं
प्यार से मनाती मम्मी
अच्छे नंबर जब मैं पाती
गले से मुझको लगाती मम्मी
जब भी मैं अच्छा काम करती
गोद में मुझे बिठाती मम्मी
मेरे जीवन की मुस्कान मम्मी
मेरे घर की शान मम्मी
सुबह शाम वो पूजा करती
मुझमे संस्कार जगाती मम्मी
दुनिया से अच्छी शेफ़ मम्मी
खाने ल़जीज बनाती मम्मी
मेरे दिल की धड़कन मम्मी
पापा की भी जान मम्मी
घर में सबकी जान मम्मी
रखती सबका  ध्यान मम्मी
मेरी प्यारी प्यारी मम्मी
मेरे घर की शान मम्मी

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू 

मम्मी - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू मम्मी  - द्वारा    -  अनिल कुमार गुप्ता  पुस्तकालय अध्यक्ष  केंद्रीय विद्यालय सुबाथू Reviewed by anil kumar gupta on November 01, 2018 Rating: 5

खुदा तेरे इर्द - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता , पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू

November 01, 2018

खुदा तेरे इर्द  - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता

खुदा तेरे इर्दगिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक के दिल में रहता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा गमगीनों की आह में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक की दुआओं में बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा पालने के शिशु की मुस्कान में बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक की जीत और हार में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

खुदा हर एक की ख़ुशी और ग़मों में बसता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

तेरे बुरे दिनों में भी वो तेरे साथ होता, तुझे एहसास ही नहीं होता
ये तेरी नज़र का कुसूर नहीं है तो और क्या है

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू 

खुदा तेरे इर्द - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता , पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू खुदा तेरे इर्द  - गिर्द बसता , तुझे एहसास ही नहीं होता - द्वारा   -  अनिल कुमार गुप्ता  , पुस्तकालय अध्यक्ष  केंद्रीय विद्यालय सुबाथू Reviewed by anil kumar gupta on November 01, 2018 Rating: 5

वक़्त - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता (के वी सुबाथू )

November 01, 2018

वक़्त

वक़्त भी क्या , किसी को कुछ कहकर आता है
कभी ये खुशियों की सौगात लाता है, तो कभी ग़मों का सैलाब लाता है

वक़्त के तराजू को हाथों में , थाम लिया जिसने
उसकी कोशिशों को मंजिल का दामन , नसीब हुआ समझो

वक़्त की कसौटी पर , खुद को खरा साबित कर देखो
तेरे प्रयासों को और तुझे नसीब होंगे , आसमां के सितारे

वक़्त के परचम तले , खुद को संवारकर देखो
तेरी जिन्दगी , खुशियों से होगी रोशन

वक़्त से जो निभा ली , यारी तुमने
तेरी जिन्दगी को नसीब होंगी , हज़ारों खुशियाँ

अपने प्रयासों को , वक़्त का हमसफ़र कर देखो
तेरे प्रयासों को मंजिल का , आसमां होगा नसीब

तेरी कोशिशों को होगा नसीब , तेरी आरज़ू का साथ
गर  जो थाम लिया तूने, वक़्त का दामन

नसीब उसका संवारता है , जो चलता है वक़्त के साथ
किस्मत संवर  जाती है , रोशन होती है शख्सियत उसकी

तुम भी कुछ कदम , वक़्त का साथ लिए चलकर देखो
तुझे भी नसीब होगी , एक प्यारी सी मुस्कुराती जिन्दगी

द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता (के वी सुबाथू )

वक़्त - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता (के वी सुबाथू ) वक़्त - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता (के वी सुबाथू ) Reviewed by anil kumar gupta on November 01, 2018 Rating: 5
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