नदी की धार में - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता - पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू
anil kumar gupta
October 31, 2018
नदी की धार में
नदी की धार में मछली भी , तिनका बन बह जाती है
जीवन के झंझावातों में, जिन्दगी तड़प कर रह जाती है
सागर के तट पर बैठ, लहरों का नज़ारा ले क्यों
लहरों से जो न टकरायें , वो जिन्दगी नासूर बन रह जाती है
बगैर पंखों के कोई आसमां में , उड़े तो उड़े कैसे
बगैर हौसलों के जिन्दगी , अधूरे प्रयासों का समंदर हो जाती है
किसी के प्रयास उसकी मंजिल का , पता हुए तो हुए क्यों नहीं
खुद पर एतबार न हो तो , कोशिशें बेकार हो रह जाती हैं
उत्कर्ष की राह पर, प्रयासों को जो , अपना हमसफ़र न करो
असफलताओं के दौर में , जिन्दगी फंसकर रह जाती है
अपने हौसलों , अपने प्रयासों पर जो न किया एतबार
जिन्दगी असफल प्रयासों की राह में , उलझकर रह जाती है
जिनके प्रयासों में होती है जान, और होता है खुद पर एतबार
उनकी जिन्दगी सफलताओं के दौर से, गुजर रोशन हो जाती है
द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथू
नदी की धार में - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता - पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथू
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October 31, 2018
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